सारांश – यह शोध पत्र गतिहीन हो गए आध्यात्मिक पर्यटन को गति एवं शासकीय गाइडलाइन को ध्यान में रखते हुए चार महाधाम एवं जिला नीमच (मध्य प्रदेश )के विशेष संदर्भ में प्रस्तुत किया जा रहा है । इस शोधपत्र का मुख्य उद्देश्य यह है कि वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए आध्यात्मिक पर्यटन को किस प्रकार आत्मनिर्भर बनाएं कि मंदिर परंपरा को बिना दूरस्थ क्षेत्रों की यात्रा के भी जीवित रखा जा सके साथ ही सरकारी कोष में पर्यटन से मुद्रा अर्जित की जा सके। हमारे राष्ट्र के मंदिर गौरवमयी इतिहास, संस्कृति, स्थापत्य कला एवं अन्य कई विशेषताओं के कारण अद्वितीय है ,जहां हरियाली ,जल और भूमि उपलब्ध है। इन संसाधनों का उपयोग करते हुए क्षेत्रीय मंदिरों को बहुउद्देशीय आध्यात्मिक पर्यटन स्थलों में रूपांतरित किया जा सकता है।
संकेत शब्द – आत्म निर्भर, स्थानीय तीर्थ स्थल, आध्यात्मिक पर्यटन, बहुउद्देशीय।
1- प्रस्तावना –पर्यटन शब्द ही अत्यंत आकर्षक है। जीवन की भागदौड़ से दूर शांत , सुरम्य वातावरण में इच्छा अनुरूप ज्ञानार्जन करते हुए मनोनुकूल समय बिताना ही पर्यटन का मुख्य उद्देश्य होता है। जहां मानव जवाबदारियों और दैनिक नियत दिनचर्या से दूर प्रसन्नता पूर्वक समय बिताना चाहता है। अपने मनपसंद स्थान का पर्यटन करना मनुष्य की अभिलाषा होती है। भारतीय संस्कृति में प्रत्येक मनुष्य की अपने जीवन काल में तीर्थ यात्राओं की अभिलाषा होती है, विशेषकर चार धाम तीर्थ की तीव्र उत्कंठा होती है लेकिन शारीरिक ,आर्थिक या मानसिक किसी भी प्रकार की समस्या के कारण यदि कोई व्यक्ति इन पर्यटन स्थलों का भ्रमण नहीं कर पाता है तब अपने जीवन में अधूरापन महसूस करता है। इस अधूरेपन को दूर करने के लिए निवास क्षेत्र में युवाओं , सामाजिक कार्यकर्ताओं व जागरूक नागरिकों के द्वारा अपने आसपास के ऐसे धार्मिक स्थलों की स्थापना की जा सकती है ,जिससे मंदिर परंपरा को नूतन व बहुउद्देशीय स्थापना के साथ आत्मनिर्भरता प्रदान की जा सकती है। इससे सभी आयु वर्ग के व्यक्ति अपनी धार्मिक परंपराओं से जुड़ने के साथ ही संस्कृति से भी जुड़ेंगे तथा कई पौराणिक कथाओं का ज्ञान होगा। घर से निकलकर मंदिर तक जाने में स्वास्थ्य लाभ होगा और स्वभाव से नकारात्मकता दूर होगी। पर्यटन को बढ़ावा देने में शासन का एक मुख्य उद्देश्य मुद्रा अर्जित करना भी है। (कुमार पांडे काबिया 2018) आध्यात्मिक पर्यटन में मनुष्य खुले मन से बिना संकोच के स्वेच्छा पूर्वक राशि व्यय करता है जिससे हमारे राष्ट्र की संपत्ति में इजाफा होता है। विदेशी नागरिकों से भी मुद्रा अर्जित होती है । इस शोधपत्र का प्रमुख उद्देश्य यह है कि आध्यात्मिक पर्यटन के प्रमुख लाभ ,उनमें प्रमुख आवश्यक सुधार ,सुझाव व उन्हें किस प्रकार बहुद्देशीय बनाया जाए।
2-चार धाम तीर्थ : विशेष संदर्भ
बद्रीनाथ धाम – भगवान नारायण हिमालय में तपस्या कर रहे थे तब उनके शरीर पर बर्फ जम गई । जब यह बात मॉं लक्ष्मी को पता चली तो उन्होंने बद्री अर्थात बेर के पेड़ का रूप धारण करके भगवान नारायण पर छाया कर दी इस दौरान भगवान तपस्या में ही लीन रहे और उनके ऊपर की बर्फ भी हट गई पर माता का शरीर बर्फ के प्रभाव से काला हो गया तपस्या का फल माता को ही मिला और भगवान ने माता को आशीर्वाद दिया कि पहले उनका ही स्मरण किया जाएगा । महालक्ष्मी ने बेर के पेड़ का रूप धारण किया था इसलिए इस धाम को बदरीनाथ धाम कहा जाने लगा। भारतवर्ष के उत्तराखंड जिला चमोली में स्थित बद्रीनाथ धाम में वास्तव में बद्रीनारायण के रूप में भगवान विष्णु विराजित है। उत्तराखंड के मंदिर के पुजारी दक्षिण भारत (केरल )के नम्बूदरि संप्रदाय के ब्राह्मण होते हैं ।बद्रीनाथ मंदिर का सबसे प्रमुख पर्व गंगा नदी के पृथ्वी पर आने की खुशी में मनाया जाने वाला पर्व “माता मूर्ति का मेला “है। -TV Tube Amazing World (2011)
द्वारिका धाम – द्वारिका धाम को मोक्षदायिनी तीर्थ भी कहा जाता है। द्वारिका में रणछोड़ जी का मंदिर भी बहुत सुंदर है। श्री कृष्ण युद्ध से भागकर द्वारिका पहुंचे थे इसलिए जरासंध ने उन्हें रणछोड़ कहा था यह मंदिरों की नगरी है। गुजरात प्रांत के समुद्री तट अरब सागर पर स्थित है भगवान कृष्ण ने जब मथुरा नगरी छोड़ी तब द्वारिका नगरी की स्थापना की। यहां 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक नागेश्वर भी है। पुराण के अनुसार श्रीकृष्ण के शरीर त्यागने के बाद द्वारिका भी समुद्र में विलीन हो गई थी जिसके प्रमाण आज भी पुरातत्व विभाग के पास उपलब्ध है । यहां आकर्षक रणछोड़ मंदिर भी है । द्वारिका धाम को मोक्षदायिनी तीर्थ भी कहा जाता है। मंदिरों की नगरी द्वारिका में रणछोड़ जी का मंदिर भी बहुत सुंदर है। Bhakti Gang (2017)
जगन्नाथ मंदिर – जगन्नाथ शब्द का अर्थ “जगत के स्वामी ” होता है। जगन्नाथ रथ यात्रा और छुआछूत निवारण की भावना के कारण जगन्नाथ मंदिर का विशेष महत्व है। पूर्वी भारत में उड़ीसा राज्य में बंगाल की खाड़ी किनारे बसे जगन्नाथ मंदिर को संत क्षेत्र , नीलगिरी , शाक क्षेत्र , श्री क्षेत्र और पुरुषोत्तम क्षेत्र भी कहा गया है। देश की चारों दिशाओं में शंकराचार्य जी द्वारा मठों की स्थापना की गई है। उन्हीं में से एक जगन्नाथ पुरी का “गोवर्धन पीठ “है। यहां नानक देव जी का नानक मठ भी स्थित है। मंदिर में भगवान जगन्नाथ ,बलभद्र और सुभद्रा की महादारू लकड़ी से निर्मित दिव्य मूर्तियां हैं। यह मंदिर शिल्प कला का अद्वितीय नमूना है।आषाढ़ शुक्ल की द्वितीया को होने वाली रथयात्रा यहां का प्रमुख उत्सव है। मंदिर के सिंहद्वार में कदम रखते ही समुद्र की आवाज आना बंद हो जाती है लेकिन जैसे ही मंदिर के बाहर कदम रखेंगे समुद्र की आवाज आना शुरू हो जाती है । जगन्नाथ मंदिर के ऊपर से पक्षी और हवाई जहाज नहीं गुजरते। मंदिर का झंडा प्रतिदिन मंदिर का एक पुजारी मंदिर के शिखर से प्रतिदिन बदलता है। दिन के किसी भी समय मंदिर की परछाई नहीं बनती और मंदिर का ध्वज हमेशा हवा की दिशा से विपरीत दिशा में लहराता है। जगन्नाथ मंदिर में जहां 7 बर्तनों को एक के ऊपर एक रखकर भगवान के लिए प्रसाद बनाया जाता है दुनिया की सबसे बड़ी रसोई है। Hindu Rituals (2017)
रामेश्वरम – भगवान राम ने इस स्थान को शिवलिंग निर्माण के लिए चुना था इसलिए इस स्थान का नाम रामेश्वरम पड़ा। यह दक्षिण भारत का तीसरा सबसे बड़ा मंदिर है। यह चार धाम और 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है । यह द्रविड़ शैली पर बना मंदिर है। इसे स्वामी नाथ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर में दुनिया के सबसे लंबे बरामदे हैं जो 4000 फीट लंबे हैं। 12 वीं सदी में श्री लंका के राजा पराक्रमी बाहू ने मंदिर का गर्भगृह बनवाया था। इसके बाद अनेक राजा ने समय-समय पर इसका निर्माण करवाया। मंदिर का निर्माण कार्य लगभग 350 वर्षो में पूरा हुआ। राम नाथ मंदिर परिसर में 2200 जलकुंड है। रामेश्वरम में जनवरी-फरवरी में तैराकी पर्व मनाया जाता है। जुलाई-अगस्त में प्रभु विवाह का उत्सव मनाया जाता है। चैत्र माह में देवताओं का अन्ना अभिषेक ,जेष्ठ माह में राम लिंग पूजा , वैशाख में 10 दिनों तक वसंत उत्सव तथा महाशिवरात्रि भी धूमधाम से मनाई जाती है।
3- आत्मनिर्भर पर्यटन – नीमच जिले के संदर्भ में
पर्यटन की दृष्टि से मंदिरों को कैसे बनाएं -प्रत्येक श्रद्धालु मंदिर जाकर अपने इष्ट के चरणों में माथा टेकना चाहता है। यदि मंदिर धार्मिक स्थल के साथ-साथ रमणीय स्थल भी हो तो श्रेष्ठ पर्यटन स्थल साबित होंगे। मंदिरों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित
करने के लिए मंदिरों में ही पर्याप्त संसाधन उपलब्ध होते हैं जिनका सही इस्तेमाल करके अपने आवासों के आसपास के क्षेत्रों में स्थित मंदिरों को नूतन स्वरूप प्रदान करके सुंदर पर्यटन स्थलों में रूपांतरित किया जा सकता है। ऐसा करके हम मंदिरों को ना सिर्फ धार्मिक स्थल अपितु बहुउद्देशीय स्थलों के रूप में विकसित कर पाएंगे। विकास के पायदान तय करने के लिए मानवीय उर्जा , ज्ञान और उचित मार्गदर्शन के लिए मंदिर क्षेत्र के ही प्रभावशाली और समर्पित व्यक्तियों का नेतृत्व प्राप्त किया जा सकता है।
महामाया भादवा माता मंदिर – नीमच शहर से 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भादवा गांव में स्थापित है भादवा माता का मंदिर। इस मंदिर की प्रसिद्धि दूर-दूर तक इसलिए है कि यहां पर अनेकों रोगों से ग्रसित रोगी आते हैं और मंदिर परिसर में स्थित बावड़ी के चमत्कारी जल से स्नान करके माताजी के दर्शन करते हैं और निरोगी होकर वापस अपने घर लौटते हैं। इस मंदिर में लकवा ग्रस्त रोगी मंदिर के आसपास लगी दुकानों से बिस्तर किराए पर लेकर परिसर में ही लेटे-लेटे माता की आराधना करते हैं। वहीं मिलने वाले तेल से मालिश भी करते हैं और स्वस्थ होने पर अपने घर लौटते हैं। लगभग 800 साल पहले माता ने एक भील को स्वप्न में दर्शन देकर मूर्ति को निकालने का आदेश दिया था, तभी से भील समुदाय ही मंदिर में पुजारी का कार्य करते आए हैं। प्रतिवर्ष चैत्र और कार्तिक की नवरात्रि में अनेकों भक्त नंगे पैर मंदिर तक पहुंचते हैं।
यह भादवा माता का जगत प्रसिद्ध मंदिर नीमच से 18 किलोमीटर दूर स्थित है जहां पर लकवा ग्रस्त रोगी पूरी श्रद्धा के साथ आते हैं और माता की कृपा से स्वस्थ होकर लौटते हैं। ऐसी मान्यता है कि प्रति रात्रि माता मंदिर के गर्भगृह से बाहर निकलकर रोगियों के बीच में जाती हैं। यहां के चमत्कारी बावड़ी के जल से लोग नहाते हैं और प्रकार के रोग जैसे लकवा, नेत्र रोग और कोढ़ जैसे रोग भी ठीक हो जाते हैं। माता के सामने अखंड ज्योत प्रज्वलित रहती है। मंदिर में रविवार को माता की विशेष आराधना का दिवस होता है। मंदिर परिसर के आसपास 12 महीने मेले जैसा दृश्य दिखाई देता है। लेकिन चैत्र और अश्विन मास की नवरात्रि पर यहां पर विशेष मेला लगता है।
किलेश्वर महादेव मंदिर – यह शिव मंदिर अति प्राचीन है साथ ही यह एक रमणीय स्थल के रूप में भी विकसित किया गया है जो कि बहुत बड़े क्षेत्र में स्थित है। यहां महाशिवरात्रि पर विशेष साज-सज्जा की जाती है तथा पूरे सप्ताह का मेला रहता है।
किलेश्वर महादेव मंदीर का बाहर से लिया गया फोटो। किलेश्वर महादेव जी का यह मंदिर नीमच में एक बहुत बड़े क्षेत्र में बना हुआ है जो एक बहुत ही सुंदर पर्यटन स्थल है यहां पर विविध प्रकार के फव्वारे और सुंदर उद्यान और समारोह करने के लिए स्थान भी उपलब्ध है |
सुखानंद धाम – नीमच से 32 किलोमीटर दूर अरावली पर्वत पर स्थित सुखानंद मंदिर का इतिहास वेदव्यास के पुत्र सुखदेव मुनि से जुड़ा हुआ है। यहां से दूसरी गंगा का उद्गम भी माना जाता है। यहां पर शिव मंदिर 62 फीट ऊंचा वाटरफॉल, सुंदर पहाड़ियां ,गंगा का पानी आदि आकर्षण के केंद्र हैं। यहां वैशाख पूर्णिमा पर मेला लगता है। मंदिर का इतिहास 1000 वर्ष पुराना माना जाता है।
बरूखेड़ा शिव मंदिर –बरूखेड़ा नीमच में ऐतिहासिक शिव मंदिर है जिनकी देखभाल पुरातत्व विभाग करता है तथा ऐसी मान्यता है कि यह मंदिर शिवजी की बारात के साथ उड़ कर आए थे।
चारभुजा नाथ मंदिर – नीमच जिले के मनासा तहसील के कंजार्डा गांव में स्थित है। यहां जन्माष्टमी धूमधाम से मनाई जाती है। मंदिर में चारों ओर देखने लायक कलाकृतियां बनी हुई है। यहां होली उत्सव भी आनंद और उत्साह के साथ मनाया जाता है।
बालाजी धाम मंदिर, बघाना- नीमच शहर का यह भी एक अति प्राचीन मंदिर है जो मनोहारी है यहां बालाजी सिया राम और लक्ष्मण सहित विराजे हैं मंदिर में कई वर्षों से अखंड ज्योत जल रही है। हनुमान जयंती के दिन यहां पर मनोहारी झांकियां सुसज्जित रहती है। इस दिन यहां पर कई धार्मिक आयोजन संपन्न होते हैं मंदिर परिसर बहुत ही सुंदर है।
आंतरी माता मंदिर- मनासा तहसील मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर स्थित है। आंतरी माता का मंदिर रेतम नदी के तट पर स्थित है । यह काफी चमत्कारी मंदिर माना जाता है। यहां लोग मनोकामना पूर्ण होने पर अपनी जुबान काट कर चढ़ाते हैं जो पुनः आ जाती है।
4. मंदिरों को कैसे बहुउद्देशीय बनाया जाए: चर्चा
भारतवर्ष में यात्रा और मंदिर परंपरा को बनाए रखने तथा इस परंपरा को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कुछ नया रचनात्मक चिंतन आवश्यक है। समय के साथ मंदिरों को बहुउद्देशीय बनाया जाना महत्वपूर्ण है; जो मंदिरों की महत्ता को परिपूर्णता की ओर ले जाता है। इस हेतु कुछ महत्वपूर्ण सुझाव प्रस्तुत है।
4.1 स्वास्थ्य- एक तो अपने घर से निकलकर मंदिर तक पैदल चलकर जाना ही स्वास्थ्यवर्धक है। दूसरे कई मंदिरों में चढ़ावे की आय से जनसेवा चिकित्सालय स्थापित किए हैं। इसका श्रेष्ठ उदाहरण नीमच का गायत्री मंदिर स्थित चिकित्सालय और जैन मंदिर द्वारा संचालित जैन चिकित्सालय है।
4.2 धर्म– भारतीय संस्कृति भक्ति भाव से ओतप्रोत है। मंदिरों का विकास भक्ति के द्वारा ईश्वर प्राप्ति के लिए श्रेष्ठ उपासना स्थल है।
4.3 मनोरंजन- नीमच के किलेश्वर महादेव मंदिर की भूमि पर अत्यंत मनोरम प्राकृतिक दृश्य, फव्वारें, बगीचे, धर्मशाला, बच्चों के चरित्र तरह तरह के झूले इत्यादि विकसित किए गए हैं जो अन्य मंदिरों के लिए भी अनुकरणीय है।
4.4 शिक्षा- नीमच शहर के गायत्री मंदिर में कक्षा आठवीं तक विद्यालय संचालित हो रहा है। इसी तरह जैन मंदिर का जैन विद्यालय संचालित हो रहा हैं जहां जैन धर्म की शिक्षा दी जाती है।
4.5 पुस्तकालय एवं पुस्तकों की दुकान- नीमच गायत्री मंदिर में कई धार्मिक पुस्तकों का संग्रह है यहां इन पुस्तकों को न्यूनतम मूल्य पर विक्रय भी किया जाता है।
4.6 योग- कई मंदिरों में विभिन्न योग प्रशिक्षकों के द्वारा योग प्रशिक्षण दिया जाता है; जिसमें नीमच का गायत्री मंदिर एवं बालाजी मंदिर बघाना भी सम्मिलित है।
4.7 आश्रय स्थल- मंदिरों में बेसहारा और आपदा पीड़ित लोगों के लिए आश्रय स्थल बना कर इन्हें बहुत योगी बनाया जा सकता है।
4.8 ऋण सुविधा- आर्थिक दृष्टि से कई मंदिर अत्यंत संपन्न है; जो गरीब और जरूरतमंदों को अपनी नीति बनाकर ऋण सुविधा प्रदान कर सकते हैं।
4.9 रोजगार के अवसर- जब मंदिर परिसर में नियंत्रित न्यूनतम दरों पर, चिकित्सालय, बगीचे, धर्मशालाएं, विद्यालय, गौशाला का संचालन एवं सुबह में फलों का रस जैसे नीम, गिलोय, ज्वारे, आंवला, चुकंदर इत्यादि का वितरण होगा तो रोजगार के अवसर भी विकसित होंगे।
4.10 गौशाला- मंदिरों में धार्मिक कर्मकांड के दौरान गोदान करना हिंदू संस्कृति में महादान माना जाता है। मान्यता है कि इससे मनुष्य मोक्ष प्राप्त करता है। गौशाला निर्माण जैव संरक्षण, जीवदया और स्वस्थ पर्यावरण के रखरखाव की पूर्ति करता है।
4.11 बागवानी और खेती- अमूमन सभी मंदिरों के परिसर काफी बड़े बड़े होते हैं; इस भूमि पर बागवानी और खेती के द्वारा आर्थिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
4.12 पर्यावरण से जुड़ाव- “हीलिंग हिमालयाज फाउंडेशन” के संस्थापक प्रदीप सांगवान मानते हैं; कि युवाओं में पर्यावरण के प्रति दायित्व का बोध है यही बात मैराथन रनर एवं ब्लॉगर ऑफ इंडिया फाउंडेशन के संस्थापक रिपुदमन जी का भी यही मानना है।
– ईश्वर प्राप्ति का सबसे सुगम मार्ग है भक्ति (2020)
5. वर्तमान संदर्भ में मंदिर व्यवस्था: चिंतन
आध्यात्मिक पर्यटन पर संदर्भित शोधपत्र में गायत्री मंदिर को महत्व नहीं दिया गया; जबकि गायत्री मंदिर मानव जीवन को प्रकाशित कर रहे हैं सभी छोटे बड़े शहरों में गायत्री मंदिर के 5000 से अधिक केंद्रों में योगा, प्राणायाम, नित्य यज्ञ चिकित्सालय, पुस्तकों की दुकान, विद्यालय संचालित हो रहे हैं। इन मंदिरों में 16 संस्कार भी संपन्न करवाए जाते हैं। इन के माध्यम से लोगों को रोजगार भी प्राप्त है। गायत्री परिवार के द्वारा संचालित “अखंड ज्योति” एकमात्र धर्म, विज्ञान, साहित्य और संस्कृति से जुड़ी पत्रिका है; जिसमें विज्ञापन नहीं छपते और मात्र ₹220 रुपए वार्षिक शुल्क पर मिलती है।
– कुमार, पांडे और काबिया (2018)
5.1 भूमि का सही उपयोग नहीं होना- कई मंदिरों के परिसर में भूमिका सृजनात्मक उपयोग नहीं किया जा रहा है।
5.2 चढ़ावे और दान का सही उपयोग नहीं होना- मंदिरों में चढ़ावे और दान, कई प्रकार की भौतिक वस्तुएं इत्यादि एकत्रित होते हैं। यदि इनका सही दिशा में उपयोग किया जाए तो मंदिरों की एक नई तस्वीर उभरकरआएगी।
5.3 ट्रस्ट पर भी नियंत्रण- ट्रस्ट के सदस्यों के व्यक्तिगत प्रभाव को अहमियत ना देते हुए ट्रस्ट द्वारा मंदिर प्रबंधन ही मुख्य उद्देश्य होना चाहिए।
5.4 मंदिरों का राजनीतिकरण ना हो- मंदिर भक्ति और उपासना के पवित्र स्थल के रूप में अपनी पहचान बनाए रखें इसके लिए आवश्यक है; कि राजनीति करने और मंदिरों की धन संपदा पर कुदृष्टि डालने वालों को दूर रखा जाए।
5.5 भगवान के नाम पर छल – मंदिरों में छल कपट का माहौल जन्म ना ले इसके लिए यह अत्यंतआवश्यक है कि राम रहीम कांड जैसी घटनाओं का दमन किया जाए। ढोंगी साधु संतों से बचाव किया जाए।
5.6 अंधविश्वास- मंदिरों में बलि कर्म तथा अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाले क्रिया कर्म पर रोक होनी चाहिए।
5.7 पर्यावरण से भी प्रेम- नीमच जिले के भादवा माता मंदिर में अनेकों रोगी ठीक होकर अपने-अपने घर जाते हैं और मन्नत पूरी करने के लिए सोने चांदी की वस्तुएं रुपये इत्यादि के साथ बकरे-बकरी, मुर्गे इत्यादि जीवो को भी देवी के नाम पर मंदिर में छोड़ते हैं जो चढ़ावे के अनाज के ढेरों पर घूमते रहते हैं मंदिर में इस अव्यवस्था से स्वच्छता का प्रबंधन नहीं हो पाता।
6. शोध निष्कर्ष : भारतवर्ष में धार्मिक भावना से ओतप्रोत मनुष्य धार्मिक यात्रा करके मोक्ष और मुक्ति का मार्ग तलाश का है। हमारे अनेकों मंदिर स्थापत्य कला और वास्तुकला के अद्भुत नमूने हैं कई प्राचीन मंदिर अनेक विशेषताओं को समेटे हुए हैं जो अपने समय की विशिष्ट अभियांत्रिकी से निर्मित होकर आज भी सभी को हतप्रभ करते हैं। वर्तमान की आवश्यकता को देखते हुए मंदिर की यात्रा सिर्फ एक धार्मिक स्थल के रूप में ही नहीं अपितु अन्य कई उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भी की जा सकती है। वर्तमान समय में आई नैतिकता में गिरावट को समाप्त करने के लिए, अवसाद से बाहर आने के लिए ,अनुशासित जीवन के लिए, धर्म और संस्कृति की तरफ युवाओं को आकर्षित करने के लिए मंदिर परंपरा का जीवित रहना अत्यंत आवश्यक है। सभी को इस और रिझाने के लिए आध्यात्मिक पर्यटन को आत्मनिर्भर बनाना सर्वजन हिताय सिद्ध होगा।
साभार संदर्भ
1. ईश्वर प्राप्ति का सबसे सुगम मार्ग है भक्ति (2020), अखंड ज्योति: 25- 26, 84 (5)
2. कुमारा, पाण्डेय और कावियाए (2018) भारत में आध्यात्मिक पर्यटन के परिप्रेक्ष्य में यज्ञ की भूमिका महत्व एवं संभावनाएं Interdisciplinary journal of yoga research,1 (2),01.06
3. पर्यटन स्थलों को सुधारते यह युवा, (2020), 1 अखंड ज्योति: 42-44-84(4)
4. Bhakti Ganga (2017) Vishnu ji kolan, Dwarika Dham (25th Sept. 2020)
5. Hindu rituals (2017) Secret Behind the name of ameshwaram (25th Sept. 2020)
6. Hindu Rituals (2017) Stay of jagannath puri temple (25th Sept 2020)
7. Mera Shining India (2019), Bhadwa mata Mandir Neemuch (25th Sept 2020)
8.TV Tube Amazing world (2017), Visit Badrinath Dham 25th Sept (2020)
लेखक- पुष्पलता सक्सेना
plsaxena29@gmail.com